क्या ऐसे जनप्रतिनिधि किसी काम के हैं?

क्या ऐसे जनप्रतिनिधि किसी काम के हैं?

प्रधान संपादक - मनहरण कश्यप 

कोटा// "जनसेवा ही प्रभु सेवा है", लेकिन जब शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मूलभूत विषयों की अनदेखी हो, तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

जनप्रतिनिधियों की सबसे पहली जिम्मेदारी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान देना होना चाहिए। यही असली जनसेवा है। अगर कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित है और मुख्यमंत्री स्वास्थ्य सहायता योजना के तहत सहायता की बार-बार अपील कर रहा है, फिर भी क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि उसकी सुध नहीं ले रहे—तो ऐसे जनप्रतिनिधियों का पद पर बने रहना व्यर्थ है।

सरकार की योजना तो बनी है, परन्तु जनप्रतिनिधियों की अनुशंसा के बिना आम नागरिक को उसका लाभ नहीं मिल पाता। जब किसी गरीब, लाचार, अपंग व्यक्ति की जान पर बन आए और उसके इलाज के लिए जरूरी सहयोग सिर्फ इसीलिए न मिले क्योंकि जनप्रतिनिधि "अनदेखी" कर रहे हैं, तो क्या यह संवेदनहीनता नहीं है?

क्या जनप्रतिनिधि सिर्फ उद्घाटन और भाषण देने तक सीमित रह गए हैं? क्या उन्हें सिर्फ फोटो खिंचवाने और रिबन काटने से ही संतोष है?

अगर विधायक, सांसद, सरपंच या पंच सिर्फ रस्म निभाने में लगे रहें और ज़रूरतमंदों की पीड़ा से मुंह मोड़ लें, तो उनसे बड़ा अपराधी कोई नहीं।

यह सवाल सिर्फ एक व्यक्ति की पीड़ा का नहीं है — यह एक पूरे जनतंत्र की आत्मा से जुड़ा प्रश्न है। क्या हम ऐसे जनप्रतिनिधियों को जवाबदेह नहीं ठहराएंगे?

समय आ गया है कि हम सवाल करें — और जवाब मांगें।

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